दाऊजी महाराज का मंदिर मथुरा से 23 किलोमीटर दूर बल्देव के मध्य में स्तिथ है। यह मंदिर अत्यंत ही प्राचीन मंदिर है और इस मंदिर पर पर्यटक दाऊजी महाराज के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। क्योंकि यहां से गोकुल की दूरी बस कुछ ही किलोमीटर दूर रह जाती है इसलिए यह मंदिर अत्यंत चहल पहल का केंद्र बना रहता है।
अतः इस मंदिर पर अत्यधिक आकर्षण का एक मुख्य केंद्र यह भी है की यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी को समर्पित है अतः इस मंदिर में बलदाऊ और उनकी पत्नी रेवती जी का विग्रह विराजमान है।
इसके अलावा यह मंदिर ब्रज चौरासी कोष की पदयात्रा में भी आता है क्योंकि बलदेव ब्रज 84 कोस की पदयात्रा के मार्ग में ही पड़ता है अतः व्रज 84 कोस की यात्रा बलदेव से होकर गुजरती है। अतः इन्हीं सभी कर्ण की वजह से बलदेव पर्यटकों का केंद्र बना रहता है यदि आप ब्रज के इस मंदिर से अनभिज्ञ थे या अभी तक आपको इस मंदिर में दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है तो आपको इस मंदिर में एक बार अवश्य दाऊजी महाराज के दर्शन करने चाहिए। दाऊजी महाराज का मंदिर

क्योंकि दाऊजी महाराज भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई हैं अतः आप श्री बलदेव जी से अगर कोई मनोकामना कहते हैं और यदि बलराम जी श्री कृष्णा से आपकी बात कह देते हैं तो भगवान श्री कृष्णा कभी अपने बड़े भाई बलदेव जी की बात नहीं टालते हैं।
दाऊजी महाराज का मंदिर की विशेषता क्या हैं ?
दाऊजी महाराज का मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह हैं कि यह सम्पूर्ण भारत में बलराम जी को समर्पित एक ही मंदिर है। तथा इस मंदिर में स्तिथ दाऊजी महाराज का जो विग्रह है वह 5000 वर्ष से भी अधिक पुराना बताया जाता है। अतः मंदिर भी काफी प्राचीन है लेकिन अभी उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयासों के तहत ब्रज के तीर्थ स्थलों को पुनर्निर्माण किया जा रहा है अतः इस मंदिर का भी पुनर्निर्माण किया गया है।
होली की खास परंपरा: कोड़ मार होली
दाऊजी महाराज मंदिर में होली बहुत ही अनोखे अंदाज़ में मनाई जाती है, जिसे “कोड़ मार होली” कहा जाता है। इसमें गोपियां अपने प्रेम भाव में गोपों पर प्रतीकात्मक रूप से कोड़ बरसाती हैं। यह परंपरा 500 साल पुरानी मानी जाती है और इस दृश्य को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। दाऊजी महाराज का मंदिर
होली की शुरुआत मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि से होती है और समापन दाऊजी महाराज मंदिर पर होता है। त्योहारों के समय यहाँ बहुत भारी भीड़ होती है, इसलिए अगर आपको भीड़ पसंद नहीं तो उस समय यात्रा टाल सकते हैं।
श्री दाऊजी महाराज मंदिर का दर्शन और इतिहास
दाऊजी महाराज, श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का ही एक रूप माने जाते हैं। इस पोस्ट में आपको बलदेव मथुरा स्थित उनके प्राचीन मंदिर की जानकारी मिलेगी, साथ ही मंदिर से जुड़ी कई रोचक बातें भी जानने को मिलेंगी।
मैं आपको लेकर चल रहा हूं दाऊजी महाराज के मंदिर की तरफ। यह मंदिर मथुरा जिले में स्थित है और बलदेव क्षेत्र में आता है। मान्यता है कि एक ब्राह्मण, कल्याण देव को बलराम जी ने दर्शन दिए और भूमि से मूर्ति निकालने का आदेश दिया। इसके बाद मंदिर का निर्माण कराया गया। दाऊजी महाराज का मंदिर
मंदिर में चार मुख्य द्वार हैं — 20 इंच का दरवाज़ा, जनानी ड्योढ़ी, गौशाला द्वार, और बड़वाले दरवाजे। मंदिर के पीछे एक विशाल कुंड स्थित है, जिसे बलभद्र कुंड कहा जाता है। इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। दाऊजी महाराज का मंदिर
मंदिर परिसर में एक बाज़ार भी लगा होता है, जहाँ भगवान की पोशाकें, खिलौने, और प्रसाद में चढ़ाने वाला माखन-मिश्री आसानी से उपलब्ध हैं। मंदिर के अंदर भव्य सजावट देखने को मिलती है और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है।
रेवती मैया की प्रतिमा साथ में क्यों नहीं होती?
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि रेवती मैया की प्रतिमा दाऊजी महाराज की प्रतिमा के बिल्कुल पास में नहीं लगाई गई है। इसके पीछे मान्यता है कि एक बेटी अपने मायके में पति के साथ एक ही स्थान पर खड़ी नहीं होती, लज्जा के कारण। इसीलिए रेवती मैया की मूर्ति मंदिर में अलग स्थान पर स्थापित की गई है। दाऊजी महाराज का मंदिर
मंदिर का महत्व और इतिहास
यह मंदिर बल्लभ संप्रदाय का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। यमुना नदी के तट पर स्थित इस मंदिर को गोपाल जी का मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर के चारों ओर परिक्रमा मार्ग बना हुआ है और पीछे की तरफ एक विशाल कुंड स्थित है, जिसे छीर सागर के नाम से भी जाना जाता है।

यह मंदिर मथुरा जंक्शन से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर मथुरा-एटा मार्ग पर स्थित है। रास्ते में गोकुल और महावन जैसे प्रसिद्ध स्थल भी पड़ते हैं। दाऊजी महाराज का मंदिर
कैसे औरंगज़ेब की सेना दाऊजी के मंदिर तक कभी नहीं पहुँच पाई – ब्रज की चमत्कारी कथा
मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल में यह निश्चय किया गया था कि ब्रज क्षेत्र में कोई भी मूर्ति या मंदिर नहीं छोड़ा जाएगा। वृंदावन का गोविंद देव जी मंदिर और कृष्ण जन्मभूमि पहले ही उजाड़ दिए गए थे। किसी ने औरंगज़ेब से कहा कि सबसे ज़्यादा भीड़ तो बलदेव जी (दाऊजी) के मंदिर में होती है। उसने तुरंत आदेश दिया कि सबसे पहले दाऊजी के मंदिर को तोड़ा जाए।
सेना मथुरा से चल पड़ी। दिनभर चलती, शाम हो जाती — रास्ते में जब लोग पूछते कि दाऊजी कितनी दूर हैं, तो हर बार जवाब मिलता — “आठ कोस।” ये सिलसिला कई दिनों तक चला। हर दिन के बाद भी दूरी वही — “आठ कोस।” हफ्ते बीत गए, महीना निकल गया लेकिन दाऊजी के आठ कोस कभी खत्म नहीं हुए। दाऊजी महाराज का मंदिर
आखिरकार औरंगज़ेब ने अपने मौलवियों से पूछा कि ये क्या चक्कर है, कैसे पहुँचा जाए मंदिर तक? उन्होंने कहा किसी स्थानीय ब्राह्मण से पूछो। तभी यमुना किनारे संध्या करते एक वृद्ध ब्राह्मण — चतुर्वेदी जी — को पकड़ लिया गया।
सेनापति ने कहा — या तो रास्ता बता दो, नहीं तो सिर कलम कर दिया जाएगा। वृद्ध ब्राह्मण बहुत दुखी हुए, बोले — “हे ठाकुर, अब आपकी मर्ज़ी। हम तो कटेंगे ही, लेकिन सच्चाई तो यही है कि बिना मनौती (व्रत/प्रार्थना) के दाऊजी तक कोई नहीं पहुँच सकता।”
भगवान की प्रेरणा से ब्राह्मण ने उपाय बताया: “अगर बादशाह वाक़ई मंदिर तक पहुँचना चाहता है, तो उसे मनौती करनी होगी — जैसे भोग लगाना, श्रृंगार करना, कुछ व्रत लेना। अगर वह मंदिर तोड़ने की मंशा से आया है, तो कैसे पहुँच पाएगा?”
औरंगज़ेब, जो जीवन भर मंदिर तोड़ता आया था, उसने पहली बार व्रत लिया — उसने सवा मन माखन-मिश्री का भोग, स्वर्ण आभूषण, और सोने की ध्वजा चढ़ाने का वादा किया। दाऊजी महाराज का मंदिर
जैसे ही ये संकल्प किया गया — उसी दिन उसकी सेना मंदिर तक पहुँच गई। आठ कोस का चक्कर खत्म हो गया।
लेकिन जैसे ही उन्होंने मूर्ति को छूने की कोशिश की, गर्भगृह से लाखों की संख्या में मधुमक्खियाँ, ततैयाँ और भँवरे निकल आए। वो पूरे सैनिकों पर टूट पड़े। ना तलवार काम आई, ना तोप। सैनिक चीखने लगे — “बचाओ! मर गए!”
औरंगज़ेब की सेना का 80% वहीं मारा गया। खुद बादशाह भी बुरी तरह डर गया। तब उसने तौबा की, जो वादा किया था वो सब चढ़ाया, तब जाकर सब शांत हुआ।
आज भी दाऊजी की मूर्ति पर वही सोने का कंठा, ध्वजा और श्रृंगार देखा जा सकता है — जो एक मुग़ल सम्राट ने चमत्कार देखकर चढ़ाया था।
बलदेव जी की आरती और विशेषताएं
बलदेव जी की आरती की विशेषताएं बहुत सारी हैं । यहां पर एक बड़ा घंटा भी स्थित है, जिसे बजाकर भक्त अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
मंदिर की सुंदरता, इतिहास और माहौल भक्तों को एक अलग ही आध्यात्मिक अनुभूति कराता है। हालांकि, मंदिर में फोटोग्राफी की अनुमति नहीं है। दाऊजी महाराज का मंदिर
मथुरा रेलवे स्टेशन से बलदेव मंदिर कैसे जाएं?
मथुरा रेलवे स्टेशन से दाऊजी महाराज मंदिर की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। स्टेशन से सीधा टेंपो या बैटरी रिक्शा नहीं मिलता, इसलिए आपको रास्ते में एक-दो बार वाहन बदलना पड़ेगा।
- पहला स्टेप: मथुरा रेलवे स्टेशन से लोकल शेयरिंग टेंपो लें और टाउनशिप तक जाएं। इसका किराया लगभग ₹25 प्रति व्यक्ति होता है।
- अगर टेंपो डायरेक्ट ना मिले, तो पहले टैंक चौराहा जाएं, फिर वहां से टाउनशिप के लिए दूसरा टेंपो पकड़ें।
- टाउनशिप से बलदेव के लिए एक और शेयरिंग टेंपो लेना होगा। इस राइड का किराया भी लगभग ₹25 होता है और यात्रा में 15-20 मिनट लगते हैं। दाऊजी महाराज का मंदिर
मंदिर तक कैसे पहुंचें?
टेंपो आपको बलदेव में मंदिर के मेन गेट के पास उतारेगा। वहां से मंदिर की दूरी लगभग 1 किलोमीटर है, जिसे आप 20-25 मिनट में पैदल तय कर सकते हैं या ₹10 के शेयरिंग बैटरी रिक्शा से भी जा सकते हैं। दाऊजी महाराज का मंदिर
मंदिर का वातावरण और जानकारी
मंदिर के बाहर आपको प्रसाद, फूल-मालाएं, खिलौने और अन्य भक्ति सामग्री की दुकानें मिल जाएंगी। मंदिर परिसर बहुत ही शांत और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है।
मंदिर के खुलने का समय
सुबह: 6:00 AM – 12:00 PM
शाम: 4:00 PM – 8:00 PM
शाम के समय यहां भक्तों की अच्छी-खासी भीड़ जुटती है, खासकर त्योहारों पर।
दर्शन और वापसी
दर्शन के बाद, वापस मथुरा रेलवे स्टेशन जाने के लिए वही रूट अपनाएं:
- बलदेव से टाउनशिप तक टेंपो (₹25)
- फिर टाउनशिप से मथुरा रेलवे स्टेशन तक दूसरा टेंपो (₹25) ( दाऊजी महाराज का मंदिर )
ब्रज के मुख्य ठाकुरों में से एक हैं वलदेव में स्थित दाऊजी महाराज का मंदिर। अगर आपको हमारे ब्लॉग को पड़ने के बाद अगर आपको दाऊजी के दर्शन ब्रज आकर करने हैं ? तो आप हमसे सम्पर्क कर सकते है हम आपकी यात्रा को सफल और सुखमयी बनाने का पूरा प्रयास करेंगे।
 
				